Friday, 7 November 2008

आसमान पाने के लिए / * अशोक लव


फैली उंगलियाँ
नहीं बाँध पातीं हथेलियों में
हवाएं
बहुत दूर रहता है उनसे
आसमान ,
जुडकर उंगलियाँ
ले लेती हैं मुट्ठी का रूप
बाँध लेती है हवाएं
पा लेती हैं अपने हिस्से का
आसमान।
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कविता-संग्रह " अनुभूतियों की आहटें "
वर्ष -१९९७

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