Thursday, 11 June 2009

एकांत में अहसास / अशोक लव


प्रकृति के आँचल में आते ही
न चिंताएँ
न तनाव
समुद्र की उठती -गिरती
तट तक आकर लौट जाती लहरें
पाँवों का स्पर्श कर , जाती लहरें
दूर तक केवल जल ही जल
दूर तक केवल लहरें ही लहरें
न माया न मोह
न छल न कपट
न काम न क्रोध
न ईर्ष्या न द्वेष
न मृगतृषनाएँ
न अपेक्षाएँ
न आकांक्षाएँ
न घात-प्रतिघात
न अपने न पराए
बस एकांत
बस सागर की विशालता
और इस एकांत में अहसास
अपना
अपने अस्तित्व का
और प्रकृति का।
.......................................
*६.६.०९ , सैंटा बारबरा , कैलीफोर्निया

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