Saturday, 27 June 2009

कठपुतली हो जाना / अशोक लव


कितना कठिन होता है
अपने अस्तित्व को खो देना
मात्र कठपुतली बन जाना ।

डोर खिंचते ही
उठना -बैठना
चलना -फिरना
घूमना - झूमना
हँसना-रोना ।

नहीं मर पातीं कठपुतलियाँ
अपनी इच्छा से
डोर खिंचते ही
वे फिर संकेतों पर जीने लगती हैं ।
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*१३.६.०९ , कैलीफोर्निया
* सर्वाधिकार सुरक्षित

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