Wednesday 10 March, 2010

रे मन कुछ तो सुन ! / अशोक लव



आते हैं जीवन की पगडंडियों पर चलते हुए
उलझनों भरे पल
जब स्वयं को ही नहीं समझ पाते हम।

घेर लेती हैं पगडंडियों पर बिखरी झाड़ियाँ
उलझ जाते हैं बढ़ते पाँव
कुछ नहीं सूझता
...कुछ भी नहीं
बहुत कठिन होते हैं ये पल
बहुत कठिन।

टटोलना चाहते हैं
पढ़ना चाहते हैं
समझना चाहते हैं
स्वयं को
कितने विवश हो जाते हैं
हम
स्वयं को ही नहीं
समझ पाते हैं हम ।
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@अशोक लव १०.३.१०

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