Sunday, 18 July 2010

चल बिटिया चल

नन्हीं बिटिया
उंगली छुड़ा
काली नंगी सड़क पर
टेढ़े -सीधे पग रखती
भाग खड़ी हुई
पकड़ पाता उसे
वह तब तक गिर गई थी
छिल गए थे उसके घुटने।

उसे उठाया
घुटने सहलाए
ले चला फिर घुमाने उंगली पकड़।
छुड़ा ली उसने फिर उँगली
छिले घुटनों की पीड़ा भूल
दौड़ गई वह

इस बार नहीं दौड़ा उसके पीछे
उसे जाने दिया
बिना उंगली पकडे चलने का
अपना ही सुख होता है।
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@सर्वाधिकार -अशोक लव
पुस्तक-अनुभूतिओं की आहटें ( वर्ष-1997)

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