अशोक लव
Friday, 9 July 2010
संगीता
स्वरूप
जी
,
लघुकथा
पाठकों
के
लिए
बहुत
कुछ
छोड़
जाती
है।
यही
इस
विधा
की
विशेषता
है।
यदि
टिन्नी
इस
लघुकथा
को
पढ़
ले
तो
ऐसी
मूर्खता
न
करे
।
वैसे
हमारी
कामना
यही
है
कि
टिन्नी
को
समझ
आ
जाए।
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