Friday, 9 July 2010

संगीता स्वरूप जी , लघुकथा पाठकों के लिए बहुत कुछ छोड़ जाती है। यही इस विधा की विशेषता है। यदि टिन्नी इस लघुकथा को पढ़ ले तो ऐसी मूर्खता करे वैसे हमारी कामना यही है कि टिन्नी को समझ जाए।

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