Thursday, 22 December 2011
Saturday, 26 November 2011
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।--रहीम के दोहे
लघुकथा संग्रह -सं -अशोक लव |
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥
खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥
जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥
आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥
खीरा सिर ते काटिये, मलिए नोन लगाय।
रहिमन करुये मुखन को, चहियत यही सजाय॥
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥
जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥
जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥
बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥
माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥
एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥
रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥
रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥
रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥
रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥
बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥
मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥
दोनों रहिमन एक से, जब लौं बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, ऋतु वसंत कै माहि॥
रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥
Friday, 18 November 2011
अशोक वर्मा की ग़ज़ल
प्रिय मित्र श्री अशोक वर्मा की यह ग़ज़ल बेहद पसंद है.
छूते नहीं हैं पाँव से अब तो ज़मीन लोग
रहते हवाओं में सदा सारे हसीन लोग.
झाँका किया खिड़की से वो मासूम-सा बच्चा
निकले सुबह तो शाम को लौटे ज़हीन लोग.
अपना नगर है चल ज़रा तू देखभाल कर
दे जाएँ ना धोखा कहीं बेहतरीन लोग.
जब से लगा है आईना इस शहर के करीब
बगलें लगे हैं झाँकने कुछ नामचीन लोग.
फुर्सत नहीं अपनों से जो कर पाएँ दिल की बात
यूं बन के सारे रह गए हैं जैसे मशीन लोग.
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-पुस्तक- ग़ज़ल बोलती है से साभार
छूते नहीं हैं पाँव से अब तो ज़मीन लोग
रहते हवाओं में सदा सारे हसीन लोग.
झाँका किया खिड़की से वो मासूम-सा बच्चा
निकले सुबह तो शाम को लौटे ज़हीन लोग.
अपना नगर है चल ज़रा तू देखभाल कर
दे जाएँ ना धोखा कहीं बेहतरीन लोग.
जब से लगा है आईना इस शहर के करीब
बगलें लगे हैं झाँकने कुछ नामचीन लोग.
फुर्सत नहीं अपनों से जो कर पाएँ दिल की बात
यूं बन के सारे रह गए हैं जैसे मशीन लोग.
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-पुस्तक- ग़ज़ल बोलती है से साभार
Friday, 4 November 2011
8th Pratibhashalee Mohyal Vidyarthee Samman-2011
"8th Pratibhashalee Mohyal Vidyarthee Samaan " function was held at GMS Hq ,New Delhi on 9th October 2011. Dr Bhai Mahaveer ( Ex Governor MP ) was the Chief Guest. President GMS Rzd BD Bali gave away prizes and honored the students of Secondary and Sr Secondary classes for their excellent results. Dr Ashok Lav (Secy GMS ) is the convener of this award. He conducted the programme.--Pulkit Vaid
हिन्दी के लिए संघर्षरत रहे श्री राजकरण सिंह को विनम्र श्रद्धांजलि / अशोक लव
हिन्दी भाषा के लिए दीर्घकालीन संघर्षरत रहे जुझारू श्री राजकरण सिंह के निधन के समाचार ने स्तब्ध कर दिया. अनेक साहित्यिक आयोजनों में उनसे भेंट होती रही थी. वे अपनी तरह के विशिष्ट व्यक्ति थे. वर्षों तक हिन्दी भाषा के लिए ऐसा संघर्ष करने वाले बहुत कम लोग हुए हैं. हम हमेशा उनके प्रशंसक रहे हैं. राजकरण एक लहर थे जिसने पूरे देश को हिन्दी के लिए आंदोलित कर दिया था. उनके निधन पर हार्दिक सम्वेदनाएँ !!---अशोक लव
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हिंदी आंदोलन के प्रमुख स्तम्भ " राजकरण सिंह जी " की असामयिक मृत्यु पर आयोजित शोक सभा |
डी - 51 , हौज खास , नई दिल्ली
... भारतीय भाषा आंदोलन के पुरोधा राजकरणसिंह को आज 30 अक्टूबर 2011की सुबह को हृदयगति रूकने से अपने गांव बिष्णुपुरा बाराबंकी जनपद में निधन हो गया।
57 वर्षीय राजकरण सिंह, भारतीय भाषाओं को संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं में अग्रेजी अनिवार्यता के बंधन से मुक्त करने के लिए देश की राजधानी दिल्ली में अपने साथी पुष्पेन्द्रसिंह चैहान के साथ ‘अखिल भाारतीय भाषा संरक्षण संगठन’ के बेनरतले संघ लोक सेवा आयोग ‘यूपीएससी’ के समक्ष 16 ंसाल लम्बे अपने विश्व ंविख्यात निरंतर धरना प्रदर्शन ंकरके पूरे देश कंे ंप्रबुद्व जनमानस को लोहिया के आंदोलन के बाद उद्देलित करने वालों में प्रमुख रहे।
ंइसी ंमुद्दे पर 29 दिन लम्बी आमरण अनशन की गूंज संसद से लेकर भारतीय भाषा समर्थकों को झकझोर कर रख दिया था। उनके इसी आंदोलन की विराटता का पता इसी बात से साफ झलकता है कि देश के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल, चतुरानन्दमिश्र, मुलायमसिंह यादव, शरद यादवं, रामविलास पासवान, सोमपाल शास्त्री, सहित चार दर्जन से अधिक सांसदों ने कई समय यहां के आंदोलन में ंसडक में भाग लिया था।
समय : 4 नवम्बर 3 बजे शाम को
स्थान : भारत नीति प्रतिष्ठान डी - 51 , हौज खास , नई दिल्ली
... भारतीय भाषा आंदोलन के पुरोधा राजकरणसिंह को आज 30 अक्टूबर 2011की सुबह को हृदयगति रूकने से अपने गांव बिष्णुपुरा बाराबंकी जनपद में निधन हो गया।
57 वर्षीय राजकरण सिंह, भारतीय भाषाओं को संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं में अग्रेजी अनिवार्यता के बंधन से मुक्त करने के लिए देश की राजधानी दिल्ली में अपने साथी पुष्पेन्द्रसिंह चैहान के साथ ‘अखिल भाारतीय भाषा संरक्षण संगठन’ के बेनरतले संघ लोक सेवा आयोग ‘यूपीएससी’ के समक्ष 16 ंसाल लम्बे अपने विश्व ंविख्यात निरंतर धरना प्रदर्शन ंकरके पूरे देश कंे ंप्रबुद्व जनमानस को लोहिया के आंदोलन के बाद उद्देलित करने वालों में प्रमुख रहे।
ंइसी ंमुद्दे पर 29 दिन लम्बी आमरण अनशन की गूंज संसद से लेकर भारतीय भाषा समर्थकों को झकझोर कर रख दिया था। उनके इसी आंदोलन की विराटता का पता इसी बात से साफ झलकता है कि देश के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल, चतुरानन्दमिश्र, मुलायमसिंह यादव, शरद यादवं, रामविलास पासवान, सोमपाल शास्त्री, सहित चार दर्जन से अधिक सांसदों ने कई समय यहां के आंदोलन में ंसडक में भाग लिया था।
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माॅ भारती के चरणों में ताउम्र समर्पित रहे भाषा आंदोलन के पुरोधा राजकरण सिंह
‘राजकरण जी का निधन हो गया’ - मुझे सहसा विश्वास ही नहीं हुआ। विश्वास होता भी कैसे ं29 अक्टूबर की सांय 4 व 5 बजे की बीच मेरी राजकरण सिंह से दूरभाष पर बात हुई । वे दीपावली के त्यौहार अपने परिजनों से मिलने अपने गांव, विष्णुपुरा-बाराबंकी उंत्तर प्रदेश गये थे। 29 अक्टूबर को सायं 4 व 5ंबजे के बीच उनसे दूरभाष पर बात हुई वे उस समय ...पूरे स्वस्थ व किसी काम से लखनऊं जाने की बात कह रहे थे,,--संसद में भारतीय भाषाओं के लिए नारा लगाने के 21 अप्रेल 1989 के बाद में भारतीय भाषा आंदोलन से जुडा। वहां मेरी भैंट राजकरण सिंह,ं पुष्पेन्द्र चैहान सहित अन्य साथियों के साथ हुई । उसी आंदोलन के ंदंौरान मैं उत्तराखण्ड र ाज्य गठन आंदोलन के लिए अपने आप को समर्पित करने का मन बना कर प्यारा उत्तराखण्ड समाचार पत्र का 1993 से प्रकाशन किया। राजकरण सिंह ंकें साथ मेरे दोे दशक के करीब का साथ रहा। ंभाषा आंदोलन के दौरान उनके तैवर, संगठन प्रबंधन क्षमता, वैचारिक ंप्रबुद्वता व ंसंहृदय को देख कर मैने उनको अपने बडे भाई व साथी के रूप में तब से आज तक पाया। यादें ंरह रह कर मुझे उद्देल्लित कर रही है। चाहे भाषा आंदोलन में जब वे जेल से न्यायालय लाये गये तो न्यायाधीश के सम्मुख्ंा उनकी सिंह गर्जना, उप प्रधानमंत्री देवीलाल से जब हम दोनों उनके ंरंाष्ट्रपति भवन परिसर में मिले आवास में मिलने की घटना हो, ज्ञानी जैलसिंह, अटल बिहारी वाजपेयी आदि के संग धरने पर मुद्दंे पर समर्पण आदि सैकडों यादों का सहभागी रहा मैं आज जान कर भी ंयह मानने के लिए तैयार नही हूॅ कि राजकरण सिंह जी यहां नहीं रहे।--जब मैं व राजकरण सिंह ंबाबा रामदेव के आन्दोलन में जाते या अण्णा हजारे सहित देश के आंदोलन में जाते तो वे कहते मेरा मन करता कि एक बार फिर 29 दिन वाली ऐतिहासिक भूखहड़ताल करूं। वरिष्ठ पत्रकार बनारसीसिंह व भाई महेश जी के साथ मिल कर बातें करते करते चाय पीते पीते अनैक ज्वलन्त विषयों पर चर्चा करनंा हम दोनों की दिनचर्या का एक अंग बन गया था। आये दिन हम ंएक दूसरे से मिलते रहते, अगर कारणवश मिले नहीं तो दूरभाष पर अवश्य बात होती। वे अपने अनुभवों को याद करते हुए ंकहते रहते अब तक छोटे लक्ष्य व सोच वाले लोगों ंका साथ इंसान को किसी भी हालत में नहीं करना चाहिए।वे अवसरवादी इन्सानों को पहचानने के बाद उनसे ंदूर ही रहते। वे भाषा आंदोलन के साथियों के तो बडे भाई व संरक्ष्ंाक के रूप में थे पर अपने सभी परिचितों के साथ वे परिवार के एक जिम्मेदार सदस्य के रूप में ंसदा खडे रहते। चाहे विजय गुप्त जी के साथ हो या मेरे। हर ंकाम को वे बहुत ही ंईमानदारी व जिम्मेदारी से निभाते। ंवे सदा अहं को छोड़ कर निष्छल सेवा भाव से हर काम को मजिल तक अंजाम दे कर पूरा करने में विश्वास रखते। उनका व मेरा एक मित्र व एक भाई की तरह अनन्य साथ कई वर्षो से निरंतर बना हुआ था। आज हर जगह हर मोड़ व हर अवसर पर मुझे लगता है कि राजकरण जी अभी आते तभी आते... .। -बार बार आंखों में उमडते आंसुओं कोे मानो वो ही धीरज देते हुए से प्रतीत होते कि इसी का नाम जीवन है। यह सोच कर की हर जीवन की यात्रा का यही मुकाम है,। उनकी यादे ही मेरे शेष जीवन पथ की धरोहर है। मै उनकी पावन स्मृति को शतः शतः नमन् करता हॅू। www.rawatdevsingh.blogspot.com
‘राजकरण जी का निधन हो गया’ - मुझे सहसा विश्वास ही नहीं हुआ। विश्वास होता भी कैसे ं29 अक्टूबर की सांय 4 व 5 बजे की बीच मेरी राजकरण सिंह से दूरभाष पर बात हुई । वे दीपावली के त्यौहार अपने परिजनों से मिलने अपने गांव, विष्णुपुरा-बाराबंकी उंत्तर प्रदेश गये थे। 29 अक्टूबर को सायं 4 व 5ंबजे के बीच उनसे दूरभाष पर बात हुई वे उस समय ...पूरे स्वस्थ व किसी काम से लखनऊं जाने की बात कह रहे थे,,--संसद में भारतीय भाषाओं के लिए नारा लगाने के 21 अप्रेल 1989 के बाद में भारतीय भाषा आंदोलन से जुडा। वहां मेरी भैंट राजकरण सिंह,ं पुष्पेन्द्र चैहान सहित अन्य साथियों के साथ हुई । उसी आंदोलन के ंदंौरान मैं उत्तराखण्ड र ाज्य गठन आंदोलन के लिए अपने आप को समर्पित करने का मन बना कर प्यारा उत्तराखण्ड समाचार पत्र का 1993 से प्रकाशन किया। राजकरण सिंह ंकें साथ मेरे दोे दशक के करीब का साथ रहा। ंभाषा आंदोलन के दौरान उनके तैवर, संगठन प्रबंधन क्षमता, वैचारिक ंप्रबुद्वता व ंसंहृदय को देख कर मैने उनको अपने बडे भाई व साथी के रूप में तब से आज तक पाया। यादें ंरह रह कर मुझे उद्देल्लित कर रही है। चाहे भाषा आंदोलन में जब वे जेल से न्यायालय लाये गये तो न्यायाधीश के सम्मुख्ंा उनकी सिंह गर्जना, उप प्रधानमंत्री देवीलाल से जब हम दोनों उनके ंरंाष्ट्रपति भवन परिसर में मिले आवास में मिलने की घटना हो, ज्ञानी जैलसिंह, अटल बिहारी वाजपेयी आदि के संग धरने पर मुद्दंे पर समर्पण आदि सैकडों यादों का सहभागी रहा मैं आज जान कर भी ंयह मानने के लिए तैयार नही हूॅ कि राजकरण सिंह जी यहां नहीं रहे।--जब मैं व राजकरण सिंह ंबाबा रामदेव के आन्दोलन में जाते या अण्णा हजारे सहित देश के आंदोलन में जाते तो वे कहते मेरा मन करता कि एक बार फिर 29 दिन वाली ऐतिहासिक भूखहड़ताल करूं। वरिष्ठ पत्रकार बनारसीसिंह व भाई महेश जी के साथ मिल कर बातें करते करते चाय पीते पीते अनैक ज्वलन्त विषयों पर चर्चा करनंा हम दोनों की दिनचर्या का एक अंग बन गया था। आये दिन हम ंएक दूसरे से मिलते रहते, अगर कारणवश मिले नहीं तो दूरभाष पर अवश्य बात होती। वे अपने अनुभवों को याद करते हुए ंकहते रहते अब तक छोटे लक्ष्य व सोच वाले लोगों ंका साथ इंसान को किसी भी हालत में नहीं करना चाहिए।वे अवसरवादी इन्सानों को पहचानने के बाद उनसे ंदूर ही रहते। वे भाषा आंदोलन के साथियों के तो बडे भाई व संरक्ष्ंाक के रूप में थे पर अपने सभी परिचितों के साथ वे परिवार के एक जिम्मेदार सदस्य के रूप में ंसदा खडे रहते। चाहे विजय गुप्त जी के साथ हो या मेरे। हर ंकाम को वे बहुत ही ंईमानदारी व जिम्मेदारी से निभाते। ंवे सदा अहं को छोड़ कर निष्छल सेवा भाव से हर काम को मजिल तक अंजाम दे कर पूरा करने में विश्वास रखते। उनका व मेरा एक मित्र व एक भाई की तरह अनन्य साथ कई वर्षो से निरंतर बना हुआ था। आज हर जगह हर मोड़ व हर अवसर पर मुझे लगता है कि राजकरण जी अभी आते तभी आते... .। -बार बार आंखों में उमडते आंसुओं कोे मानो वो ही धीरज देते हुए से प्रतीत होते कि इसी का नाम जीवन है। यह सोच कर की हर जीवन की यात्रा का यही मुकाम है,। उनकी यादे ही मेरे शेष जीवन पथ की धरोहर है। मै उनकी पावन स्मृति को शतः शतः नमन् करता हॅू। www.rawatdevsingh.blogspot.com
Sunday, 30 October 2011
Tuesday, 25 October 2011
Saturday, 22 October 2011
Thursday, 20 October 2011
Monday, 17 October 2011
ਮੋਹਯਾਲ ਆਸ਼੍ਰਮ ਵ੍ਰਿੰਦਾਵਨ ਅਤੇ ਗੋਵਰਧਨ ਲਈ ਆਰਥਿਕ ਯੋਗਦਾਨ ਦੀ ਅਪੀਲ /ਅਸ਼ੋਕ ਲਵ
ਸਾਰੇ ਮੋਹ੍ਯਾਲਾਂ ਨੂੰ ਅਨੁਰੋਧ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕੀ ਜਨਰਲ ਮੋਹਯਾਲ ਸਭਾ ਵੱਲੋਂ ਦੋ ਨਵੇਂ ਬਣ ਰਹੇ ਆਸ਼ਰਮਾਂ ---ਮੋਹਯਾਲ ਆਸ਼੍ਰਮ ਵ੍ਰਿੰਦਾਵਨ ਅਤੇ ਮੋਹਯਾਲ ਆਸ਼੍ਰਮ ਗੋਵਰਧਨ ਲਈ ਆਰਥਿਕ ਯੋਗਦਾਨ ਕਰਕੇ ਪੁੰਨ ਦੇ ਭਾਗੀਦਾਰ ਬਣੋ .
ਸਹਯੋਗ ਰਾਸ਼ੀ ਏਸ ਪਤੇ ਤੇ ਭੇਜਣ ਦਾ ਕਸ਼ਟ ਕਰੋ. ਚੇਕ 'ਜਨਰਲ ਮੋਹਯਾਲ ਸਭਾ ' ਦੇ ਨਾਂ ਤੇ ਭੇਜੋ --
Ashok Lav , Secretary-General Mohyal Sabha ,A-9,Qutab Institutional Area, Jeet Singh Marg,New Delhi-110067
Phone-011-26560456
समय के अनुसार परिवर्तन
भवत्यधर्मो धर्मो हि धर्माधर्मावुभावपि ।
कारणाद्देशकालस्य देशकाल: तादृश: ॥
-- देशकाल का ऐसा प्रभाव होता है कि एक ही काम एक समय में धर्म हो सकता है और वही समय बदलने पर अधर्म भी बन सकता है.-महाभारत (शांतिपर्व-- 79/31 )
कारणाद्देशकालस्य देशकाल: तादृश: ॥
-- देशकाल का ऐसा प्रभाव होता है कि एक ही काम एक समय में धर्म हो सकता है और वही समय बदलने पर अधर्म भी बन सकता है.-महाभारत (शांतिपर्व-- 79/31 )
Tuesday, 13 September 2011
क्षमा -दिवस पर क्षमा -याचना !
क्षमा -वाणी-दिवस के अवसर पर उन सबसे क्षमा -याचना जिन्हें किसी भी रूप में
ठेस पहुँचाई हो . हमारे आचरण या व्यवहार से जिन्हें कष्ट पहुँचा हो उनसे
भी क्षमा प्रार्थना !
Monday, 12 September 2011
Pratibhashalee Mohyal Vidyarthee Samman on 9th October 2011
Dear Brother/ Sister
It is my pleasure to inform you that your son / daughter will be honored with Pratibhashalee Mohyal Vidyarthee Samman on Sunday,9th October 2011 at Mohyal Foundation , A-9,Qutab Institutional Area, Jeet Singh Marg, New Delhi-110067 at 10:30 am.
Please confirm by phone / E-mail /post your participation.
With regards
Ashok Lav
Convenor
Pratibhashalee Mohyal Vidyarthee Samman
General Mohyal Sabha
Phone:011-265604565
Telefax:26561504,32585750
E-mail:gmsoffice2003@gmail.com,gmsoffice2003@yahoo.co.in
Website:www.mohyal.com
www.mohyalonline.com
It is my pleasure to inform you that your son / daughter will be honored with Pratibhashalee Mohyal Vidyarthee Samman on Sunday,9th October 2011 at Mohyal Foundation , A-9,Qutab Institutional Area, Jeet Singh Marg, New Delhi-110067 at 10:30 am.
Please confirm by phone / E-mail /post your participation.
With regards
Ashok Lav
Convenor
Pratibhashalee Mohyal Vidyarthee Samman
General Mohyal Sabha
Phone:011-265604565
Telefax:26561504,32585750
E-mail:gmsoffice2003@gmail.com,gmsoffice2003@yahoo.co.in
Website:www.mohyal.com
www.mohyalonline.com
Friday, 9 September 2011
Wednesday, 7 September 2011
Monday, 5 September 2011
महान शिक्षकों को नमन / अशोक लव
शिक्षक और गुरु में बहुत अंतर है. शिक्षण को व्यवसाय के रूप में अपनाने
वाले शिक्षक हो सकते हैं, गुरु नहीं. गुरु अपने लिए नहीं अपने शिष्यों के
लिए जीते हैं . अपने अर्जित समस्त ज्ञान को शिष्यों को अर्पित कर देते हैं.
गुरु कुम्हार शिष्य कुभ्भ है गढ़ि गढ़ि काढ़े खोट । अन्तर हाथ सहाय दे बाहर बाहै चोट ॥
शिक्षक अपने भीतर के प्रकाश से शिष्यों के अंधकारमय जीवन को प्रकाशमय कर देते हैं. उन्हें ज्ञानवान बनाते हैं. इसलिए गुरुजन के लिए कहा गया है-- गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
ब्रह्मा,विष्णु और महेश बनना असंभव है. यह गुरु को सम्मान देने का भाव है. वर्तमान में श्रेष्ठ शिक्षक होना ही बहुत बड़ी बात है.
ऐसे महान शिक्षकों को नमन जिन्होंने शिक्षक के पद को गुरु के रूप में बदल दिया. अपना समस्त जीवन विद्यार्थियों को समर्पित कर दिया.
गुरु कुम्हार शिष्य कुभ्भ है गढ़ि गढ़ि काढ़े खोट । अन्तर हाथ सहाय दे बाहर बाहै चोट ॥
शिक्षक अपने भीतर के प्रकाश से शिष्यों के अंधकारमय जीवन को प्रकाशमय कर देते हैं. उन्हें ज्ञानवान बनाते हैं. इसलिए गुरुजन के लिए कहा गया है-- गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
ब्रह्मा,विष्णु और महेश बनना असंभव है. यह गुरु को सम्मान देने का भाव है. वर्तमान में श्रेष्ठ शिक्षक होना ही बहुत बड़ी बात है.
ऐसे महान शिक्षकों को नमन जिन्होंने शिक्षक के पद को गुरु के रूप में बदल दिया. अपना समस्त जीवन विद्यार्थियों को समर्पित कर दिया.
Thursday, 1 September 2011
Tuesday, 30 August 2011
Friday, 26 August 2011
Tuesday, 23 August 2011
नया सूर्योदय : अन्ना हजारे / -अशोक लव
अन्ना हजारे ने आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी व्यवस्था को हिला कर रख दिया है. भ्रष्ट राजनेता तिलमिला रहे हैं. संसद में पहुँच जाने के पश्चात् वे शासक के रूप में व्यवहार करने लगते हैं. सत्तारूढ़ दल के विषय में तो कहना ही क्या है ! मंत्री बन जाने के बाद तो अधिकांश रावण के समान अहंकार में चूर हो जाते हैं. गत कुछ महीनों के घटनाक्रम को देखें तो इन सब के चेहरे आम आदमी के सामने बेनकाब हो गए हैं. सत्तारूढ़ दल के प्रवक्ताओं और मंत्रियों को खिसियाते, बौखलाते , झुंझलाते, धमकाते और रावण बनते सबने देखा है.
सबसे नीचे के स्तर से लेकर उच्चतम स्तर तक हुए घोटाले जग ज़ाहिर हो चुके हैं. प्रधान मंत्री समस्त मंत्रियों के कार्य कलापों का उत्तरदायी होता है. मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल ने जो लूट-खसोट मचाई है उसकी बखिया नियंत्रक-महालेखापरीक्षक ने उधेड़ कर रख दी हैं. दिल्ली क़ी मुख्य - मंत्री के बारे में जेल में बंद कांग्रेसी सांसद सुरेश कलमाडी ने पहले ही कहा था कि वह भी लूट-खसोट में शामिल है. लोग जानते हैं कि भिन्न - भिन्न रूपों में लूटा धन अंत में कहाँ पहुंचता है. सत्ता के केंद्र में जो व्यक्ति है जब वह और उसका परिवार अरबों रूपये लूट रहा है तो भ्रष्ट व्यक्तियों के विरुद्ध कार्यवाही कौन करेगा ? दिखाने के लिए बलि का बकरा / बकरी बनाकर कुछ लोगों को जेल में भेजकर सत्ताधीश चैन क़ी बांसुरी बजा रहे थे. आलोचना करने वालों को इसके प्रवक्ता पागल कुत्ते क़ी तरह काट खाने के लिए टूट पड़ते थे. चोरी और सीना जोरी क़ी अदभुत मिसाल !अचानक दृश्य परिवर्तित हुआ. नया सूर्योदय अन्ना हजारे के रूप में उदित हुआ. सत्तारूढ़ दल के नेता अहंकार के मद में चूर थे. इस सूर्य के सामर्थ्य को भांप नहीं पाए. आज सड़कों पर लाखों भारतीय क्यों उमड़ पड़े हैं ? क्या अन्ना के पास कोई जादू क़ी छड़ी है ? अन्ना तो एक बहाना हैं, लोग भ्रष्ट व्यवस्था से त्रस्त हैं . अन्ना के माध्यम से उन्हें अपनी बात कहने का अवसर मिला. अन्ना ने उनकी भावनाओं को अभिव्यक्ति का स्वर दिया.
आज सड़कों पर उतरे लोगों के स्वर को संसद में बैठे कुछ लोगों के बहरे कान नहीं सुन पाए तो उन्हें पछताना पड़ेगा.
यह सिद्ध हो चुका है कि प्रधानमंत्री तक घोटालों में लिप्त है. लोकपाल क़ी आवश्कता क्यों है ? इसलिए कि उसे व्यवस्था के साथ जुड़े प्रत्येक व्यक्ति के विरुद्ध कार्यवाही करने का अधिकार हो. लोकपाल बिल क़ी आड़ में लचर बिल लाकर सत्तारूढ़ दल के खेल को अन्ना ने बेनकाब कर दिया है. कुछ मंत्रियों ने अन्ना के साथ लोकपाल बिल क़ी बैठकों के बहाने जो धोखेबाजी क़ी थी. जनता में उनके इस व्यवहार के प्रति भी आक्रोश है.
चोर ऐसा कानून क्यों बनाएगा जिससे उसे जेल जाना पड़े ? सरकारी लोकपाल बिल इसका प्रमाण है.
कुशल राजनेता समय को पहचानते हैं. वे दूरदर्शी होते हैं. वर्तमान में कुछ त्यागना पड़े तो त्याग देते हैं. सत्तारूढ़ दल में ऐसा कोई दूरदर्शी नेता है ही नहीं क्योंकि सब के सब कठपुतली हैं. सबका रिमोट एक के ही हाथ में है. संकट क़ी स्थिति में सब बगले क्यों झाँकने लगते हैं ? किसी में निर्णय लेने क़ी क्षमता ही नहीं है. जब सत्ता एक व्यक्ति के हाथों में सिमट जाती है , वह तानाशाह हो जाता है. शेष सब जी-हजूरिए और दरबारी बनकर रह जाते हैं. यह जी-हजूरिए और दरबारी देश को क्या दिशा देंगे? अपने भ्रष्ट आचरणों को कानूनी रूप देने के लिए वैसा कानून बनाएँगे.
अन्ना क्या है ? जन-जन क़ी अभिव्यक्ति है.लाठी और लंगोटी वाला एक गांधी हुआ था. आज अन्ना हमारे सामने हैं ! न कोई स्वार्थ , न धन संग्रह करने क़ी लालसा ! इसलिए जन-जन अन्ना कहला रहे हैं.
Friday, 12 August 2011
काहे न धीर धरे / अशोक लव
और अधिक , और अधिक पाने और संग्रहित करने की इच्छा की पूर्ति हेतु मनुष्य अनवरत भाग रहा है। प्रातः से सायं ही नहीं अपितु देर रात तक कोल्हू के बैल के समान कार्यरत रहने लगा है. उसे न अपनी चिंता है और न अपने घर - परिवार की चिंता है. चिंता है केवल अधिक से अधिक धन अर्जित करने की. प्रातः घर से निकले और लौटेंगे कब ,कोई पता नहीं !व्यापारी अपने व्यवसाय को और अधिक विस्तार देने में शेष सब कुछ भुला देते हैं। नौकरी करने वाले अधिक धन कमाने के लालच में नौकरी के समय के पश्चात् भी कार्य करने चले जाते हैं। भागते लोग, भागती भीड़ ...कहाँ जा रहे हैं , कुछ होश नहीं है। धन और धन , बस और धन --यही जीवन का लक्ष्य रह गया है।सब व्यस्त हैं , अस्त-व्यस्त हैं . यह व्यस्तता क्या है ? किसलिए है? क्यों है ? इसके विषय में सोचने का भी समय नहीं है।धन का महत्त्व है। इसे नकार नहीं सकते। जीवन-स्तर श्रेष्ठ बने, इसके लिए धन चाहिए।हर प्रकार की सुख-सुविधा उपलब्ध हो, हो जाए तो और उपलब्ध हो....इसलिए खूब भागो...जो आगे बढ़ गए है उन्हें पीछे छोड़ो --यह अंधी दौड़ सुख चैन छीन रही है। इस अंधी दौड़ में भागता मनुष्य कब युवावस्था और अधेड़ावस्था को पार कर जाता है, उसे पता ही नहीं चलता। और जब पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। तब इस अंधी दौड़ से अर्जित धन के भोग के लिए देह कमज़ोर चुकी होती है।कबीर ने बहुत अच्छा लिखा है--मन सागर , मनसा लहरी, बूड़े -बहे अनेक ।कहि कबीर ते बाचिहैं, जाके हृदय बिबेक। ।
मन रूपी सागर में इच्छा रूपी लहरें उठती रहती हैं. एक लहर किनारे तक आती है तो दूसरी उसके पीछे-पीछे आ जाती है. इसी प्रकार एक इच्छा पूरी होती है तो दूसरी सामने आ जाती है. मनुष्य उसे पूरा करने में संलिप्त हो जाता है. एक के पश्चात एक इच्छाएं जन्म लेती है और मनुष्य उन्हें पूरा करने में लग जाता है. इन इच्छाओं रूपी लहरों में अधिकतर लोग बह जाते है. अनेक डूब कर मर जाते हैं केवल वही इनमें डूबने से बचते हैं जिनमें ' विवेक' होता है.
वर्तमान समाज में अधिकांशतः लोगों की यही दशा है. वे जो है उसके महत्त्व को नहीं जानते और जो नहीं है उन भौतिक वस्तुओं को पाने और संग्रहित करने केलिए भाग रहे हैं.दिन-रात चिंतामग्न रहते हैं. चिता तनावों की जननी है. तनावग्रस्त होकर मनुष्य भांति-भांति के रोगों से पीड़ित हो जाता है. उसकी ' विवेक' शक्ति नष्ट हो जाती है. वह सम्मानपूर्वक जीने के अर्थ भूल जाता है. नैतिक और अनैतिक में भेद न करके जैसे संभव हो धन के अम्बार लगाने में जुटा रहता है. यही कारण है राजनेतागण , उच्च पदाधिकारी , उद्योगपति और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति घोटाले पर घोटाले करते हैं. समाचार-पत्र, टीवी उनके कारनामों के पृष्ठ पर पृष्ठ प्रकाशित करते हैं / दिखाते हैं. अनेक जेल-यात्रा करते हैं और बाहर आकर निर्लज्ज घूमते हैं.
ये लोग भूल जाते हैं कि समय बहुत तेज़ी का साथ भागता है. वे धन के अम्बार जुटाते-जुटाते कब संसार से विदा ले लेते है, किसी को पता ही नहीं चलता. उनकी स्मृति एक भ्रष्ट व्यक्ति के रूप में सदा-सदा के लिए अंकित रह जाती है.
हम अनेक बार कहते हैं--लाल किला यहाँ,शाहजहाँ कहाँ ?
आज शाहजहाँ को कोई नहीं पहचानता. विश्व के अनेक राष्ट्रपति मर गए, प्रधानमंत्री मर गए. लोगों को उनके नाम तक स्मरण नहीं हैं. इन धन अर्जित करने की दौड़ में भागने वालों को उनके परिवार की तीसरी पीढी तक स्मरण नहीं करेगी.
थोड़ी देर के लिए रुकें. अपने विषय में सोचें.अपने उचित-अनुचित कार्यों का विश्लेषण करें. अपने जीवन के उद्देश्यों के विषय चिंतन करें सम्मानपूर्वक जीने के मार्ग निर्धारित करें . ' धैर्य ' को अपनाएँ. मन है तो विचलित भी होगा. उसे समझाएँ-- मन रे काहे न धीर धरे !
-- अशोक लव
मन रूपी सागर में इच्छा रूपी लहरें उठती रहती हैं. एक लहर किनारे तक आती है तो दूसरी उसके पीछे-पीछे आ जाती है. इसी प्रकार एक इच्छा पूरी होती है तो दूसरी सामने आ जाती है. मनुष्य उसे पूरा करने में संलिप्त हो जाता है. एक के पश्चात एक इच्छाएं जन्म लेती है और मनुष्य उन्हें पूरा करने में लग जाता है. इन इच्छाओं रूपी लहरों में अधिकतर लोग बह जाते है. अनेक डूब कर मर जाते हैं केवल वही इनमें डूबने से बचते हैं जिनमें ' विवेक' होता है.
वर्तमान समाज में अधिकांशतः लोगों की यही दशा है. वे जो है उसके महत्त्व को नहीं जानते और जो नहीं है उन भौतिक वस्तुओं को पाने और संग्रहित करने केलिए भाग रहे हैं.दिन-रात चिंतामग्न रहते हैं. चिता तनावों की जननी है. तनावग्रस्त होकर मनुष्य भांति-भांति के रोगों से पीड़ित हो जाता है. उसकी ' विवेक' शक्ति नष्ट हो जाती है. वह सम्मानपूर्वक जीने के अर्थ भूल जाता है. नैतिक और अनैतिक में भेद न करके जैसे संभव हो धन के अम्बार लगाने में जुटा रहता है. यही कारण है राजनेतागण , उच्च पदाधिकारी , उद्योगपति और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति घोटाले पर घोटाले करते हैं. समाचार-पत्र, टीवी उनके कारनामों के पृष्ठ पर पृष्ठ प्रकाशित करते हैं / दिखाते हैं. अनेक जेल-यात्रा करते हैं और बाहर आकर निर्लज्ज घूमते हैं.
ये लोग भूल जाते हैं कि समय बहुत तेज़ी का साथ भागता है. वे धन के अम्बार जुटाते-जुटाते कब संसार से विदा ले लेते है, किसी को पता ही नहीं चलता. उनकी स्मृति एक भ्रष्ट व्यक्ति के रूप में सदा-सदा के लिए अंकित रह जाती है.
हम अनेक बार कहते हैं--लाल किला यहाँ,शाहजहाँ कहाँ ?
आज शाहजहाँ को कोई नहीं पहचानता. विश्व के अनेक राष्ट्रपति मर गए, प्रधानमंत्री मर गए. लोगों को उनके नाम तक स्मरण नहीं हैं. इन धन अर्जित करने की दौड़ में भागने वालों को उनके परिवार की तीसरी पीढी तक स्मरण नहीं करेगी.
थोड़ी देर के लिए रुकें. अपने विषय में सोचें.अपने उचित-अनुचित कार्यों का विश्लेषण करें. अपने जीवन के उद्देश्यों के विषय चिंतन करें सम्मानपूर्वक जीने के मार्ग निर्धारित करें . ' धैर्य ' को अपनाएँ. मन है तो विचलित भी होगा. उसे समझाएँ-- मन रे काहे न धीर धरे !
-- अशोक लव
Sunday, 7 August 2011
मित्रता -दिवस पर शुभकामनाएँ !
मैत्री - दिवस सबके मन में मैत्री की भावना जागृत करे , ' सर्वे भवन्तु सुखिनः ' की भावना के अनुरूप सबकी मंगल कामना करें. सब मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएँ !
Wednesday, 27 July 2011
Thursday, 21 July 2011
गुप्तेश्वर मंदिर जेपोर : पारिवारिक और आध्यात्मिक यात्रा / अशोक लव
ओडिशा उड़ीसा का नया नाम है. पारिवारिक समारोह में सम्मिलित होने के लिए छः जुलाई 2011 को वायुयान से रायपुर और आगे की आठ घंटे की लम्बी यात्रा कार द्वारा पूरी करके शाम लगभग सात बजे जयपोर पहुँचे. इस नगर का नाम राजस्थान के जयपुर के नाम से मिलता है. केवल इंग्लिश में Jaypore लिखते हैं . बोलते सब जयपुर ही हैं.छत्तीसगढ़ का लम्बा रास्ता तय करना पड़ा. धमतरी और जगदलपुर नगर बीच में आए. 'माकड़ी' शहर के पंजाबी ढाबे पर लंच किया था.
सात जुलाई को समारोह था.
आठ जुलाई को प्रातः जयपोर से गुप्तेश्वर मंदिर के लिए चले थे. जयपोर शहर कोरापुट जिले में आता है. कोरापुट में ही भगवन शिव का यह प्रसिद्ध ऐतिहासिक मंदिर है. गुफा में स्थित लिंग है. इसके दर्शन करके हुई अनुभूति को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता .
गुफा के अन्दर अँधेरा है. पुजारी ने दीपक जलाकर चट्टानों पर स्वतः उभरी विभिन्न देवी - देवताओं की आकृतियाँ दिखाईं . गणेश जी , भगवान नरसिंह , माँ दुर्गा आदि की आकृतियाँ देखकर विस्मित होना ही पड़ता है. रोशनी होते ही गुफा में चमगादड़ उड़ने लगते थे. वहां अद्भुत आध्यात्मिक अनुभूति का अनुभव होता है.
भगवान शिव के दर्शन करके सुखद अनुभव हुआ. दिल्ली में बैठकर ऐसी यात्रा के विषय में सोचा भी नहीं जा सकता.
घने जंगलों के मध्य स्थित यह मंदिर अद्भुत है. दर्शनों के पश्चात् नीचे बहती सबरी नदी के प्रचंड बहाव वाले शीतल जल में पाँव रखते ही सारी थकान मिट जाती है. यह स्थान छत्तीसगढ़ , ओडिशा और आंध्र प्रदेश की सीमाओं को मिलाता है. वर्षा के कारण मटमैला जल अपनी अलग छटा लिए था. ऊपर स्वच्छ धुला नीला आकाश , किनारे पर हरियाली और नदी का चट्टानों से टकराता जल ! प्रकृति का अनुपम दृश्य ! कलाकार ने मानो पेंटिंग बना दी हो. कैमरे में सब दृश्यों को कैद करके संग ले आए.
प्रातः उठकर श्रीमती सरोज जी ने पकवान तैयार कर लिए थे. लौटते हुए रास्ते में चादरें बिछाकर पत्नी श्रीमती नरेश बाला और परिवार के अन्य सदस्यों --सुमीत ,पुनीत और मनीष के साथ भोजन का आनंद लिया. श्रीमती सरोज अच्छी मेज़बान हैं. कहने लगीं प्रातः चार बजे उठकर सब तैयारियां कर ली थीं. घने जंगलों में ऐसा स्वादिष्ट भोजन क्या आनंद देता है, इसकी कल्पना खाने वाले ही जानते हैं.
लौटते हुए सीधी चढ़ाई थी. ड्राईवर नया था. बीच रास्ते कार रुक गई और सुमीत, पुनीत और मनीष पत्थर लगा-लगाकर कार को ऊपर लाने में ड्राईवर की सहायता करते रहे. हम अकेले लम्बी चढ़ाई चढ़कर ऊपर तक आए. वर्षों बाद ऐसा अनुभव हुआ. देहरादून से मसूरी की दो बार ट्रैकिंग किये वर्षों गुज़र गए थे. वे दिन स्मरण हो आए.
काजू के वृक्षों , खेतों की लम्बी कतारों ,सिर पर लकड़ियाँ उठाये पैदल चलती अधेड़ उड़िया महिलाओं को लांघते हुए हम लौट रहे थे.
अभी देश के विकास में वर्षों लगेंगे. राजनेताओं को इन क्षेत्रों की ओर झाँकने का अवकाश कहाँ है !
पर्यटन की दृष्टि से इस पूरे क्षेत्र को विकसित किया जा सकता है.
Wednesday, 20 July 2011
Friday, 20 May 2011
ज़िंदगी के सफ़र में.../ आनंद बख़्शी
ज़िंदगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मकाम
वो फिर नहीं आते, वो फिर नहीं आते
फूल खिलते हैं
लोग मिलते हैं
मगर पतझड़ में जो फूल मुरझा जाते हैं
वो बहारों के आने से खिलते नहीं
कुछ लोग जो सफ़र में बिछड़ जाते हैं
वो हज़ारों के आने से मिलते नहीं
उम्र भर चाहे कोई पुकारा करे उनका नाम
वो फिर नहीं आते, वो फिर नहीं आते
आँख धोखा है
क्या भरोसा है
सुनो दोस्तों शक़ दोस्ती का दुश्मन है
अपने दिल में इसे घर बनाने न दो
कल तड़पना पड़े याद में जिनकी
रोक लो रूठ कर उनको जाने न दो
बाद में प्यार के चाहे भेजो हज़ारों सलाम
वो फिर नहीं आते, वो फिर नहीं आते
सुबह आती है
शाम जाती है
यूँही वक़्त चलता ही रहता है रुकता नहीं
एक पल में ये आगे निकल जाता है
आदमी ठीक से देख पाता नहीं
और परदे पे मंज़र बदल जाता है
एक बार चले जाते हैं जो दिन-रात सुबह-ओ-शाम
वो फिर नहीं आते, वो फिर नहीं आते
फूल खिलते हैं
लोग मिलते हैं
मगर पतझड़ में जो फूल मुरझा जाते हैं
वो बहारों के आने से खिलते नहीं
कुछ लोग जो सफ़र में बिछड़ जाते हैं
वो हज़ारों के आने से मिलते नहीं
उम्र भर चाहे कोई पुकारा करे उनका नाम
वो फिर नहीं आते, वो फिर नहीं आते
आँख धोखा है
क्या भरोसा है
सुनो दोस्तों शक़ दोस्ती का दुश्मन है
अपने दिल में इसे घर बनाने न दो
कल तड़पना पड़े याद में जिनकी
रोक लो रूठ कर उनको जाने न दो
बाद में प्यार के चाहे भेजो हज़ारों सलाम
वो फिर नहीं आते, वो फिर नहीं आते
सुबह आती है
शाम जाती है
यूँही वक़्त चलता ही रहता है रुकता नहीं
एक पल में ये आगे निकल जाता है
आदमी ठीक से देख पाता नहीं
और परदे पे मंज़र बदल जाता है
एक बार चले जाते हैं जो दिन-रात सुबह-ओ-शाम
वो फिर नहीं आते, वो फिर नहीं आते.
'''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''' जन्म: 21 जुलाई 1930 निधन: 30 मार्च 2002 |
मोसे नैना मिलाइके.....छाप तिलक / आनंद बख़्शी
लता: अपनी छब बनायके
जो मैं पी के पास गयी
आशा: अपनी छब बनायके
जो मैं पी के पास गयी
दोनों: जब छब देखी पीहू की
सो मैं अपनी भूल गयी
ओ, (छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलायके) -२
छाप तिलक
लता: सब छीनी रे मोसे नैना
नैना, मोसे नैना
नैना रे, मोसे नैना मिलायके
नैना मिलायके
दोनों: छाप तिलक सब छीनी रे मोसे
आशा: नैना, (नैना मिलायके) -२
दोनों: छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलायके
लता: ए री सखी
(मैं तोसे कहूँ) -२
हाय तोसे कहूँ
मैं जो गयी थी
(पनिया भरन को) -३
छीन झपट मोरी मटकी पटकी
छीन झपट मोरी झपट मोरी मटकी पटकी
नैना मिलायके
दोनों: छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलायके
आशा: (बल-बल जाऊँ मैं) -२
(तोरे रंग रजेवा) -२
(बल-बल जाऊँ मैं) -२
(तोरे रंग रजेवा) -३
(अपनी-सी) -३
रंग लीनी रे मोसे
नैना मिलायके
दोनों: छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलायके
आशा: ए री सखी
(मैं तोसे कहूँ) -२
हाय तोसे कहूँ
लता: (हरी हरी चूड़ियाँ) -२
(गोरी गोरी बहियाँ) -२
हरी हरी चूड़ियाँ
(गोरी गोरी बहियाँ) -३
(बहियाँ पकड़ हर लीनी) -२
रे मोसे नैना मिलायके
दोनों: छाप तिलक सब छीनी रे मोसे
आशा: नैना
(नैना मिलायके) -३
दोनों: छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलायके
जो मैं पी के पास गयी
आशा: अपनी छब बनायके
जो मैं पी के पास गयी
दोनों: जब छब देखी पीहू की
सो मैं अपनी भूल गयी
ओ, (छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलायके) -२
छाप तिलक
लता: सब छीनी रे मोसे नैना
नैना, मोसे नैना
नैना रे, मोसे नैना मिलायके
नैना मिलायके
दोनों: छाप तिलक सब छीनी रे मोसे
आशा: नैना, (नैना मिलायके) -२
दोनों: छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलायके
लता: ए री सखी
(मैं तोसे कहूँ) -२
हाय तोसे कहूँ
मैं जो गयी थी
(पनिया भरन को) -३
छीन झपट मोरी मटकी पटकी
छीन झपट मोरी झपट मोरी मटकी पटकी
नैना मिलायके
दोनों: छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलायके
आशा: (बल-बल जाऊँ मैं) -२
(तोरे रंग रजेवा) -२
(बल-बल जाऊँ मैं) -२
(तोरे रंग रजेवा) -३
(अपनी-सी) -३
रंग लीनी रे मोसे
नैना मिलायके
दोनों: छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलायके
आशा: ए री सखी
(मैं तोसे कहूँ) -२
हाय तोसे कहूँ
लता: (हरी हरी चूड़ियाँ) -२
(गोरी गोरी बहियाँ) -२
हरी हरी चूड़ियाँ
(गोरी गोरी बहियाँ) -३
(बहियाँ पकड़ हर लीनी) -२
रे मोसे नैना मिलायके
दोनों: छाप तिलक सब छीनी रे मोसे
आशा: नैना
(नैना मिलायके) -३
दोनों: छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलायके
तेरा वक़्त-ए-सफ़र याद आया / ग़ालिब
फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
दिल जिगर तश्ना-ए-फ़रियाद आया
दम लिया था न क़यामत ने हनोज़
फिर तेरा वक़्त-ए-सफ़र याद आया
सादगी हाये तमन्ना यानी
फिर वो नैइरंग-ए-नज़र याद आया
उज़्र-ए-वामाँदगी अए हस्रत-ए-दिल
नाला करता था जिगर याद आया
ज़िन्दगी यूँ भी गुज़र ही जाती
क्यों तेरा राहगुज़र याद आया
क्या ही रिज़वान से लड़ाई होगी
घर तेरा ख़ुल्द में गर याद आया
आह वो जुर्रत-ए-फ़रियाद कहाँ
दिल से तंग आके जिगर याद आया
फिर तेरे कूचे को जाता है ख़्याल
दिल-ए-ग़ुमगश्ता मगर याद् आया
कोई वीरानी-सी-वीराँई है
दश्त को देख के घर याद आया
मैं ने मजनूँ पे लड़कपन में 'असद'
संग उठाया था के सर याद आया
--ग़ालिब
Wednesday, 27 April 2011
मैं ही हूँ और तुम भी / अशोक लव
स्वप्नों के संसार में तैरते हैं कितने-कितने भाव रंग-बिरंगे.
इन्हीं में वे सब हैं
जो बहुत निकट हैं मेरे मन के .
मैं ही हूँ
सबके साथ किसी न किसी
रूप में.
मेरी इन आँखों में झांक कर देखो तो सही
तुम भी हो इन आँखों में तैरते स्वप्नों में.
और पहचान सको तो पहचान लो
मैं ही हूँ यह
सूक्ष्मता से देखो तो सही
और तुम भी हो .
--अशोक लव
Photo:Ashok Lav
Wednesday, 23 March 2011
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा असेम्बली में बम फेंकने के बाद
धमाके के बाद फेंका गया पर्चा
‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’
सूचना
(आठ अप्रैल, 1929 को असेम्बली में बम फेंकने के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा बाँटे गए अंग्रेज़ी पर्चे का हिन्दी अनुवाद)
“बहरों को सुनाने के लिए बहुत ऊँची आवाज़ की आवश्यकता होती है", प्रसिद्ध फ्रांसीसी अराजकतावादी शहीद वैलियां के यह अमर शब्द हमारे काम के औचित्य के साक्षी हैं.
पिछले दस वर्षों में ब्रिटिश सरकार ने शासन-सुधार के नाम पर इस देश का जो अपमान किया है उसकी कहानी दोहराने की आवश्यकता नहीं है और न ही हिन्दुस्तानी पार्लियामेण्ट पुकारी जाने वाली इस सभा ने भारतीय राष्ट्र के सिर पर पत्थर फेंककर उसका जो अपमान किया है, उसके उदाहरणों को याद दिलाने की आवश्यकता है. यह सब सर्वविदित और स्पष्ट है. आज फिर जब लोग “साइमन कमीशन” से कुछ सुधारों के टुकड़ों की आशा में आँखें फैलाए हैं और कुछ इन टुकड़ों के लोभ में आपस में झगड़ रहे हैं, विदेशी सरकार “सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक” (पब्लिक सेफ़्टी बिल) और “औद्योगिक विवाद विधेयक”(ट्रेड्स डिस्प्यूट्स बिल) के रूप में अपने दमन को और भी कड़ा कर लेने का यत्न कर रही हैं. इसके साथ ही आने वाले अधिवेशन में “अखबारों द्वारा राजद्रोह रोकने का क़ानून” (प्रेस सैडिशन एक्ट) लागू करने की धमकी दी जा रही है। सार्वजनिक काम करने वाले मज़दूर नेताओं की अंधाधुंध गिरफ़्तारियाँ यह स्पष्ट कर देती हैं कि सरकार किस रवैए पर चल रही है.
राष्ट्रीय दमन और अपमान की इस उत्तेजनापूर्ण परिस्थिति में अपने उत्तरदायित्व की गंभीरता को महसूस कर “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” ने अपनी सेना को यह कदम उठाने की आज्ञा दी है. इस कार्य का प्रयोजन है कि क़ानून का यह अपमानजनक प्रहसन समाप्त कर दिया जाए. विदेशी शोषक नौकरशाही जो चाहे करें परन्तु उसकी वैधानिकता का नकाब फाड़ देना आवश्यक है.
जनता के प्रतिनिधियों से हमारा आग्रह है कि वे इस पार्लियामेण्ट के पाखंड को छोड़कर अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों को लौट जायें और जनता को विदेशी दमन और शोषण के विरुद्ध क्रांति के लिए तैयार करें. हम विदेशी सरकार को यह बता देना चाहते हैं कि हम “सार्वजनिक सुरक्षा” और “औद्योगिक विवाद” के दमनकारी कानूनों और लाला लाजपतराय की हत्या के विरोध में देश की जनता की ओर से यह कदम उठा रहे हैं.
हम हर मनुष्य के जीवन को पवित्र मानते हैं. हम ऐसे उज्जवल भविष्य में विश्वास रखते हैं जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण शांति और स्वतंत्रता का अवसर मिल सके. हम इन्सान का ख़ून बहाने की अपनी विवशता पर दुखी हैं। परन्तु क्रांति द्वारा सबको समान स्वतंत्रता देने और मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को समाप्त कर देने के लिए क्रांति में कुछ-न-कुछ रक्तपात अनिवार्य है.
इन्क़लाब जिन्दाबाद !
हस्ताक्षर–
बलराज
कमाण्डर-इन-चीफ
‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’
सूचना
(आठ अप्रैल, 1929 को असेम्बली में बम फेंकने के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा बाँटे गए अंग्रेज़ी पर्चे का हिन्दी अनुवाद)
“बहरों को सुनाने के लिए बहुत ऊँची आवाज़ की आवश्यकता होती है", प्रसिद्ध फ्रांसीसी अराजकतावादी शहीद वैलियां के यह अमर शब्द हमारे काम के औचित्य के साक्षी हैं.
पिछले दस वर्षों में ब्रिटिश सरकार ने शासन-सुधार के नाम पर इस देश का जो अपमान किया है उसकी कहानी दोहराने की आवश्यकता नहीं है और न ही हिन्दुस्तानी पार्लियामेण्ट पुकारी जाने वाली इस सभा ने भारतीय राष्ट्र के सिर पर पत्थर फेंककर उसका जो अपमान किया है, उसके उदाहरणों को याद दिलाने की आवश्यकता है. यह सब सर्वविदित और स्पष्ट है. आज फिर जब लोग “साइमन कमीशन” से कुछ सुधारों के टुकड़ों की आशा में आँखें फैलाए हैं और कुछ इन टुकड़ों के लोभ में आपस में झगड़ रहे हैं, विदेशी सरकार “सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक” (पब्लिक सेफ़्टी बिल) और “औद्योगिक विवाद विधेयक”(ट्रेड्स डिस्प्यूट्स बिल) के रूप में अपने दमन को और भी कड़ा कर लेने का यत्न कर रही हैं. इसके साथ ही आने वाले अधिवेशन में “अखबारों द्वारा राजद्रोह रोकने का क़ानून” (प्रेस सैडिशन एक्ट) लागू करने की धमकी दी जा रही है। सार्वजनिक काम करने वाले मज़दूर नेताओं की अंधाधुंध गिरफ़्तारियाँ यह स्पष्ट कर देती हैं कि सरकार किस रवैए पर चल रही है.
राष्ट्रीय दमन और अपमान की इस उत्तेजनापूर्ण परिस्थिति में अपने उत्तरदायित्व की गंभीरता को महसूस कर “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” ने अपनी सेना को यह कदम उठाने की आज्ञा दी है. इस कार्य का प्रयोजन है कि क़ानून का यह अपमानजनक प्रहसन समाप्त कर दिया जाए. विदेशी शोषक नौकरशाही जो चाहे करें परन्तु उसकी वैधानिकता का नकाब फाड़ देना आवश्यक है.
जनता के प्रतिनिधियों से हमारा आग्रह है कि वे इस पार्लियामेण्ट के पाखंड को छोड़कर अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों को लौट जायें और जनता को विदेशी दमन और शोषण के विरुद्ध क्रांति के लिए तैयार करें. हम विदेशी सरकार को यह बता देना चाहते हैं कि हम “सार्वजनिक सुरक्षा” और “औद्योगिक विवाद” के दमनकारी कानूनों और लाला लाजपतराय की हत्या के विरोध में देश की जनता की ओर से यह कदम उठा रहे हैं.
हम हर मनुष्य के जीवन को पवित्र मानते हैं. हम ऐसे उज्जवल भविष्य में विश्वास रखते हैं जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण शांति और स्वतंत्रता का अवसर मिल सके. हम इन्सान का ख़ून बहाने की अपनी विवशता पर दुखी हैं। परन्तु क्रांति द्वारा सबको समान स्वतंत्रता देने और मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को समाप्त कर देने के लिए क्रांति में कुछ-न-कुछ रक्तपात अनिवार्य है.
इन्क़लाब जिन्दाबाद !
हस्ताक्षर–
बलराज
कमाण्डर-इन-चीफ
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हस्ताक्षर भगत सिंह
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Saturday, 12 March 2011
अपने लिए एक कविता /अशोक लव
चलो, एक कविता अपने लिए लिखें.
बहुत दिनों से अपने आप से बातचीत नहीं की
अपना हाल-चाल नहीं पूछा
दूसरों की इच्छाएँ पूरी करते-करते
अपना ही हाल पूछना याद नहीं रहा.
लगता है सब ठीक ही है
क्योंकि कुछ ख़ास नहीं है.
किसी ने हमसे हमारे विषय में नहीं पूछा
सब व्यस्त हैं अपनी-अपनी दुनिया में मस्त हैं.
हम उनकी दुनिया में घूमते-घूमते
अपनी ही गलियों के रास्ते भूल गए
चलें, आज अपने मन की गलियों में घूम लें.
स्वयं से स्वयं का हाल पूछ ले.
.....................................................
@ अशोक लव
Thursday, 10 March 2011
अंधा बहरा शहर / अशोक लव
शहर में शोर है
शहर में हंगामा है
शहर में भीड़ है
शहर में जुलूस निकलते हैं
जिंदाबाद ! जिंदाबाद ! मुर्दाबाद! मुर्दाबाद ! के नारे
गूँजते हैं शहर की हवा में |
बड़ी चहल-पहल रहती है शहर में
पर हत्यारे हैं कि इन सबके बीच से
चाक़ू घुमाते
गोलियां दनदनाते निकाल जाते हैं |
लाश किसकी गिरी है
बलात्कार किसका हुआ है
शहर की भीड़ को इसका पाता नहीं चलता
वह लाशों को कुचल कर आगे बढ़ जाती है
वह बलात्कार की त्रासदी भोगती नग्न देहों को
कुचलती
आगे बढ़ जाती हैं |
लोग सब कुछ देखते हैं
पर ऑंखें बंद कर लेते हैं
लोग सब कुछ सुनते हैं
पर कान बंद कर लेते हैं
शहर के न हाथ रहे हैं न पाँव
हत्यारों-बलात्कारियों को न रोक पाता है
न पकड़ पाता है शहर |
बहुत तेज़ भाग रहा है शहर
मर चुकी संवेदनाओं के साथ जी रहा है शहर |
शहर में हंगामा है
शहर में भीड़ है
शहर में जुलूस निकलते हैं
जिंदाबाद ! जिंदाबाद ! मुर्दाबाद! मुर्दाबाद ! के नारे
गूँजते हैं शहर की हवा में |
बड़ी चहल-पहल रहती है शहर में
पर हत्यारे हैं कि इन सबके बीच से
चाक़ू घुमाते
गोलियां दनदनाते निकाल जाते हैं |
लाश किसकी गिरी है
बलात्कार किसका हुआ है
शहर की भीड़ को इसका पाता नहीं चलता
वह लाशों को कुचल कर आगे बढ़ जाती है
वह बलात्कार की त्रासदी भोगती नग्न देहों को
कुचलती
आगे बढ़ जाती हैं |
लोग सब कुछ देखते हैं
पर ऑंखें बंद कर लेते हैं
लोग सब कुछ सुनते हैं
पर कान बंद कर लेते हैं
शहर के न हाथ रहे हैं न पाँव
हत्यारों-बलात्कारियों को न रोक पाता है
न पकड़ पाता है शहर |
बहुत तेज़ भाग रहा है शहर
मर चुकी संवेदनाओं के साथ जी रहा है शहर |
गर्म मोम / अशोक लव
ठंडी जमी मोम सब सह जाती है
छोटी सी
पतली-सी सुई
उतर जाती है आर-पार
बिंध जाती है मोम
तपती है जब मोम
आग बन जाती है
चिपककर झुलसा देती है
समयानुसार
जीवन को मोम बनना पड़ता है.
छोटी सी
पतली-सी सुई
उतर जाती है आर-पार
बिंध जाती है मोम
तपती है जब मोम
आग बन जाती है
चिपककर झुलसा देती है
समयानुसार
जीवन को मोम बनना पड़ता है.
पत्थरों से बंधे पंख /-अशोक लव
पत्थरों से बंधे जब पंख होते हैं
ज़ख्म हर उड़ान के संग होते हैं.
--अशोक लव
Saturday, 5 March 2011
बदलते आँगन / अशोक लव
आँगन में जनमती हैं
पलती-बढती हैं
खिलखिलाती हैं
घर-द्वार महकाती हैं |
तितलियों-सी उड़ती हैं
प्रकृति की समस्त छटाएँ छितराती हैं
कोयल-सी कुहकती हैं
घर को स्वर्ग बनाती हैं |
आता गूंथना सीखती हैं
चपातियों को गोल करना सीखती हैं
सब्जियों-मसालों में सम्बंध बनाना सीखती हैं |
पिता की आय का हिसाब रखने लगती हैं
माँ की थकान का हिसाब रखने लगती हैं
घर के उत्तरदायित्व बांटने लगती हैं |
इतना सब जब सीख जाती हैं
सहसा चिड़िया-सी उड़ जाती हैं
अपना संसार बसाती हैं |
कहाँ जनमती हैं,
कहाँ पलती हैं,
कहाँ घर बसाती हैं!
ऐसी होती हैं बेटियाँ!
पलती-बढती हैं
खिलखिलाती हैं
घर-द्वार महकाती हैं |
तितलियों-सी उड़ती हैं
प्रकृति की समस्त छटाएँ छितराती हैं
कोयल-सी कुहकती हैं
घर को स्वर्ग बनाती हैं |
माँ के चरण-चिह्नों पर
पाँव रखती हैं आता गूंथना सीखती हैं
चपातियों को गोल करना सीखती हैं
सब्जियों-मसालों में सम्बंध बनाना सीखती हैं |
पिता की आय का हिसाब रखने लगती हैं
माँ की थकान का हिसाब रखने लगती हैं
घर के उत्तरदायित्व बांटने लगती हैं |
इतना सब जब सीख जाती हैं
सहसा चिड़िया-सी उड़ जाती हैं
अपना संसार बसाती हैं |
कहाँ जनमती हैं,
कहाँ पलती हैं,
कहाँ घर बसाती हैं!
ऐसी होती हैं बेटियाँ!
Friday, 25 February 2011
Monday, 14 February 2011
वही रिश्ते हैं पनपते, जिनमें होता प्यार !
प्रेम-प्यार से चल रहा , है देखो संसार l
वही रिश्ते हैं पनपते, जिनमें होता प्यार ll
--अशोक लव
**A VERY HAPPY VALENTINE DAY !
वही रिश्ते हैं पनपते, जिनमें होता प्यार ll
--अशोक लव
**A VERY HAPPY VALENTINE DAY !
Monday, 7 February 2011
हरियाणा की प्रतिनिधि लघुकथा ० संपादक : डॉ. रूप देवगुण
लघुकथा का विहंगम परिदृश्य
डॉ.सुभाष रस्तोगी
यशस्वी साहित्यकार डॉ. रूप देवगुण की सद्य: प्रकाशित संपादित कृति हरियाणा की प्रतिनिधि लघुकथा में हरियाणा के 52 लघुकथाकारों की 126 लघु कथाएं संकलित हैं। यह जानकर हैरत होती है कि हरियाणा जैसे छोटे प्रदेश में 56 लघुकथाकार हैं और इस संपादित कृति में कई लघुकथाकार ऐसे भी हैं जिन्होंने समकालीन हिंदी लघुकथा परिदृश्य में बतौर लघुकथाकार और लघुकथा के चिंतक के रूप में अपनी स्वतंत्र पहचान भी स्थापित की है। डा. रूप देवगुण के इस चयन की एक विशेषता यह भी है कि उन्होंने संपादक के सही धर्म का निर्वाह किया है और साहित्यिक बाड़ेबंदी से बचते हुए केवल लघुकथाकारों के रचना कर्म को ही अधिमान दिया है।
यह सच है कि कोई भी कृति चाहे वह संपादित हो या मौलिक, संपादक अथवा रचनाकार के व्यक्तित्व का ही प्राय: प्रतिफलन हुआ करती है। यह काबिलेगौर है कि रूप देवगुण के व्यक्तित्व में जो सहजता और सरलता है, यह कृति अपने संपादकीय कलेवर में उसी सहजता और सरलता के कायांतरण के रूप में सामने आयी है।
रूप देवगुण द्वारा संपादित कृति ‘हरियाणा की प्रतिनिधि लघुकथा’ हरियाणा के लघुकथा लेखन की तो नुमाइंदगी करती ही है, समकालीन हिंदी लघुकथा के राष्ट्रीय परिदृश्य में हरियाणा के लघुकथाकारों के सार्थक हस्तक्षेप को भी रेखांकित करती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि हिंदी लघुकथा का जब भी कोई निरपेक्ष इतिहास लिखा जायेगा तो वह इस चयन में संकलित हरियाणा के लघुकथाकारों यथा विष्णु प्रभाकर, पूरन मुद्गल, सुगनचंद मुक्तेश, सुधा जैन, जितेन्द्र सूद, उर्मि कृष्ण, पृथ्वीराज अरोड़ा, सुखचैन सिंह भंडारी, रामकुमार आत्रेय, अशोक लव, अशोक भाटिया, रूप देवगुण, रामनिवास मानव, मधुकांत, डा. मुक्ता, कमलेश भारतीय, राजकुमार निजात, प्रेमसिंह बरनालवी, मधुदीप, हरनाम शर्मा, प्रदीप शर्मा स्नेही, सुरेन्द्र ‘गुप्त’, रोहित यादव, सत्यवीर मानव, सुरेंद्र ‘अंशुल’, कमल कपूर, बीजेन्द्र जैमिनी, प्रद्युम्न भल्ला, अरुण कुमार, पवन चौधरी ‘मनमौजी’ तथा अंजु दुआ जैमिनी के अवदान को रेखांकित किये बिना आधा और अधूरा ही रहेगा।
इस कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा डा. रूप देवगुण का एक शोधपरक विवेचनात्मक आलेख ‘हिन्दी लघुकथा को हरियाणा का योगदान’ है जो निश्चय ही समकालीन हिंदी लघुकथा परिदृश्य में हरियाणा के योगदान को रेखांकित करने की दृष्टि से एक संदर्भ कोश की भूमिका निभाता प्रतीत होता है। सोने पर सुहागा यह होता कि यदि इस लेख का समापन संपादक की कुछ निष्कर्षात्मक टिप्पणियों के साथ हुआ होता। समग्रत: डॉ. रूप देवगुण द्वारा संपादित कृति ‘हरियाणा की प्रतिनिधि लघुकथा’ का एक विहंगम परिदृश्य उपस्थित करती है।
० पुस्तक : हरियाणा की प्रतिनिधि लघुकथा ० संपादक : डॉ. रूप देवगुण ० प्रकाशक : सुकीर्ति प्रकाशन, डीसी निवास के सामने, करनाल रोड, कैथल ० पृष्ठ : 199 ०मूल्य : 250 रुपये
यह सच है कि कोई भी कृति चाहे वह संपादित हो या मौलिक, संपादक अथवा रचनाकार के व्यक्तित्व का ही प्राय: प्रतिफलन हुआ करती है। यह काबिलेगौर है कि रूप देवगुण के व्यक्तित्व में जो सहजता और सरलता है, यह कृति अपने संपादकीय कलेवर में उसी सहजता और सरलता के कायांतरण के रूप में सामने आयी है।
रूप देवगुण द्वारा संपादित कृति ‘हरियाणा की प्रतिनिधि लघुकथा’ हरियाणा के लघुकथा लेखन की तो नुमाइंदगी करती ही है, समकालीन हिंदी लघुकथा के राष्ट्रीय परिदृश्य में हरियाणा के लघुकथाकारों के सार्थक हस्तक्षेप को भी रेखांकित करती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि हिंदी लघुकथा का जब भी कोई निरपेक्ष इतिहास लिखा जायेगा तो वह इस चयन में संकलित हरियाणा के लघुकथाकारों यथा विष्णु प्रभाकर, पूरन मुद्गल, सुगनचंद मुक्तेश, सुधा जैन, जितेन्द्र सूद, उर्मि कृष्ण, पृथ्वीराज अरोड़ा, सुखचैन सिंह भंडारी, रामकुमार आत्रेय, अशोक लव, अशोक भाटिया, रूप देवगुण, रामनिवास मानव, मधुकांत, डा. मुक्ता, कमलेश भारतीय, राजकुमार निजात, प्रेमसिंह बरनालवी, मधुदीप, हरनाम शर्मा, प्रदीप शर्मा स्नेही, सुरेन्द्र ‘गुप्त’, रोहित यादव, सत्यवीर मानव, सुरेंद्र ‘अंशुल’, कमल कपूर, बीजेन्द्र जैमिनी, प्रद्युम्न भल्ला, अरुण कुमार, पवन चौधरी ‘मनमौजी’ तथा अंजु दुआ जैमिनी के अवदान को रेखांकित किये बिना आधा और अधूरा ही रहेगा।
इस कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा डा. रूप देवगुण का एक शोधपरक विवेचनात्मक आलेख ‘हिन्दी लघुकथा को हरियाणा का योगदान’ है जो निश्चय ही समकालीन हिंदी लघुकथा परिदृश्य में हरियाणा के योगदान को रेखांकित करने की दृष्टि से एक संदर्भ कोश की भूमिका निभाता प्रतीत होता है। सोने पर सुहागा यह होता कि यदि इस लेख का समापन संपादक की कुछ निष्कर्षात्मक टिप्पणियों के साथ हुआ होता। समग्रत: डॉ. रूप देवगुण द्वारा संपादित कृति ‘हरियाणा की प्रतिनिधि लघुकथा’ का एक विहंगम परिदृश्य उपस्थित करती है।
० पुस्तक : हरियाणा की प्रतिनिधि लघुकथा ० संपादक : डॉ. रूप देवगुण ० प्रकाशक : सुकीर्ति प्रकाशन, डीसी निवास के सामने, करनाल रोड, कैथल ० पृष्ठ : 199 ०मूल्य : 250 रुपये
दैनिक ट्रिब्यून : 7.2.2011
Saturday, 29 January 2011
"देनदार कोई और है, भेजत है दिन रैन" ---रहीम
रहीम अकबर के नव रत्नों में से एक थे। वे कृष्ण-भक्त थे और दानी थे। इस दोहे से उनकी विनम्रता की झलक मिलती है। दान देकर अपने नाम की भूख रखने वालों को यह दोहा हमेशा याद रखना चाहिए ।
देनदार कोई और है, भेजत है दिन रैन।
लोग भरम हम पर धरै, यातें नीचे नैन॥
देनदार कोई और है, भेजत है दिन रैन।
लोग भरम हम पर धरै, यातें नीचे नैन॥
"देने वाला तो भगवान है ,वही दिन-रात भेज रहा है। लोग समझते हैं हम दे रहे हैं। इसलिए हमने लज्जावश अपनी आँखें नीची की हुई हैं।"-रहीम
Tuesday, 25 January 2011
गणतंत्र-दिवस 2011 पर शुभकामनाएँ ....तिरंगे की कहानी !
26 जनवरी भारत का गणतंत्र दिवस है. सन 1950 में इसी दिन देश के संविधान को लागू किया गया था. तब से आज तक इस दिन को देश गणतंत्र दिवस के तौर पर मनाता है.
211 विद्वानों द्वारा 2 महीने और 11 दिन में तैयार भारत के सँविधान को लागू किए जाने से पहले भी 26 जनवरी का बहुत महत्व था. 26 जनवरी एक विशेष दिन के रूप में चिह्नित किया गया था.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1930 के लाहौर अधिवेशन में पहली बार तिरंगे झंडे को फहराया गया था परंतु साथ साथ ही एक और महत्वपूर्ण फैसला इस अधिवेशन के दौरान लिया गया. इस दिन सर्वसम्मति से यह फैसला लिया गया था कि प्रतिवर्ष 26 जनवरी का दिन “पूर्ण स्वराज दिवस” के रूप में मनाया जाएगा. इस दिन सभी स्वतंत्रता सैनानी पूर्ण स्वराज का प्रचार करेंगे. इस तरह 26 जनवरी अघोषित रूप से भारत का स्वतंत्रता दिवस बन गया था. 15 अगस्त 1947 में अंग्रेजों ने भारत की सत्ता की बागडोर जवाहरलाल नेहरू के हाथों में दे दी, लेकिन भारत का ब्रिटेन के साथ नाता या अंग्रेजों का अधिपत्य समाप्त नहीं हुआ. भारत अभी भी एक ब्रिटिश कॉलोनी की तरह था, जहाँ कि मुद्रा पर ज्योर्ज 6 की तस्वीरें थी.
आज़ादी मिलने के बाद तत्कालीन सरकार ने देश के सँविधान को फिर से परिभाषित करने की जरूरत महसूस की और सविँधान सभा का गठन किया जिसकी अध्यक्षता डॉ. भीमराव अम्बेडकर को मिली. 25 नवम्बर 1949 को देश के सँविधान को मंजूरी मिली. 24 जनवरी 1950 को सभी सांसदों और विधायकों ने इस पर हस्ताक्षर किए. और इसके दो दिन बाद यानी 26 जनवरी 1950 को सँविधान लागू कर दिया गया. गणतंत्र-दिवस 2011 पर शुभकामनाएँ !तिरंगे की कहानी
211 विद्वानों द्वारा 2 महीने और 11 दिन में तैयार भारत के सँविधान को लागू किए जाने से पहले भी 26 जनवरी का बहुत महत्व था. 26 जनवरी एक विशेष दिन के रूप में चिह्नित किया गया था.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1930 के लाहौर अधिवेशन में पहली बार तिरंगे झंडे को फहराया गया था परंतु साथ साथ ही एक और महत्वपूर्ण फैसला इस अधिवेशन के दौरान लिया गया. इस दिन सर्वसम्मति से यह फैसला लिया गया था कि प्रतिवर्ष 26 जनवरी का दिन “पूर्ण स्वराज दिवस” के रूप में मनाया जाएगा. इस दिन सभी स्वतंत्रता सैनानी पूर्ण स्वराज का प्रचार करेंगे. इस तरह 26 जनवरी अघोषित रूप से भारत का स्वतंत्रता दिवस बन गया था. 15 अगस्त 1947 में अंग्रेजों ने भारत की सत्ता की बागडोर जवाहरलाल नेहरू के हाथों में दे दी, लेकिन भारत का ब्रिटेन के साथ नाता या अंग्रेजों का अधिपत्य समाप्त नहीं हुआ. भारत अभी भी एक ब्रिटिश कॉलोनी की तरह था, जहाँ कि मुद्रा पर ज्योर्ज 6 की तस्वीरें थी.
आज़ादी मिलने के बाद तत्कालीन सरकार ने देश के सँविधान को फिर से परिभाषित करने की जरूरत महसूस की और सविँधान सभा का गठन किया जिसकी अध्यक्षता डॉ. भीमराव अम्बेडकर को मिली. 25 नवम्बर 1949 को देश के सँविधान को मंजूरी मिली. 24 जनवरी 1950 को सभी सांसदों और विधायकों ने इस पर हस्ताक्षर किए. और इसके दो दिन बाद यानी 26 जनवरी 1950 को सँविधान लागू कर दिया गया. गणतंत्र-दिवस 2011 पर शुभकामनाएँ !तिरंगे की कहानी
Monday, 24 January 2011
महान संगीत सम्राट पंडित भीमसेन जोशी विनम्र श्रद्धांजलि ! --अशोक लव
महान संगीत सम्राट पंडित भीमसेन जोशी नहीं रहे. हमारी विनम्र श्रद्धांजलि !
Saturday, 22 January 2011
संपादकीय
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स्वागत -2011
*अशोक लव
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स्वागत -2011
*अशोक लव
सन1891 से आरम्भ हुई जनरल मोहयाल सभा की यात्रा अनेक उपलब्धियों के संग वर्ष 2011 में प्रवेश कर चुकी है. आशामय ,उज्ज्वल और निरंतर गतिशील रहने वाले नए वर्ष के सूर्य का हम स्वागत करते हैं. नया वर्ष अपने संग नए स्वप्न लाता है, नई आशाएँ लाता है. नई उमंगें लाता है. हम गत वर्षों की यात्रा के विभिन्न पक्षों पर चिंतन करते हैं. मंथन करते हैं. इनके आधार पर नए वर्ष के लिए योजनाएँ-परियोजनाएँ बनाते हैं .
वर्ष 2011 में मोहयाल आश्रम वृन्दावन बनकर तैयार हो जाएगा. मोहयाल आश्रम हरिद्वार के पश्चात् मोहयालों के लिए गर्व करने का एक और सुन्दर और एतिहासिक भवन बन जाएगा. रायजादा बी डी बाली के कुशल और दूरदर्शी नेतृत्व में गत वर्षों में जो उपलब्धियाँ हुई हैं वे अद्वितीय हैं. सन 1978 में उन्होंने जनरल मोहयाल सभा के प्रेजिडेंट का पदभार संभाला था. तब से आज तक वे निरंतर किसी न किसी परियोजना को कार्यान्वित करते रहे हैं. अतीत पर दृष्टि डालें तो जी एम एस की आज तक की तमाम उपलब्धियों का श्रेय उन्हीं को जाता है. इसी का परिणाम है कि वर्ष 2010 में हुए चुनावों में मोहयाल समाज ने उन्हें और उनकी टीम को अभूतपूर्व समर्थन देकर पुनः निर्वाचित किया है. मोहयाल सजग और सतर्क हैं. रायजादा बी डी बाली द्वारा किए कार्य सबके सामने हैं. मोहयाल किसी के बहकावे में नहीं आए और उन्होंने रायजादा बी डी बाली को उत्तरदायित्व सौंप दिया.
देश के विभिन्न अंचलों में कार्य कर रही ' लोकल मोहयाल सभाएँ ' जी एम एस के साथ कदम-से कदम मिलकर चल रही हैं. जी एम एस उनकी प्रत्येक परियोजनाओं में आर्थिक और अन्य सहयोग देकर उन्हें पूर्ण समर्थन दे रही है. विभिन्न सभाओं के बने भवन इसके प्रतीक हैं. नवीनतम उदाहरण मोहयाल सभा होश्यारपुर का है. इस सभा का भवन निर्माणाधीन है. इसके पूर्ण होने में आर्थिक समस्या आ गई. उनके पदाधिकारियों ने जी एम एस से अनुरोध किया. रायजादा बी डी बाली ने तत्काल आर्थिक सहयोग की सहमति दे दी.
वास्तव में ये सारे भवन मोहयालों के लिए ही हैं. मोहयाल सभा यमुना नगर ने भी वर्तमान भवन के साथ के प्लाट को लेने का निर्णय लिया तो जी एम एस की ओर से स्वीकृति दे दी गई.
मोहयाल भवन (इन्द्रपुरी ,नई दिल्ली ) पुनः सुव्यवस्थित ढंग से संचालित हो रहा है. इसे नया रूप देने के कार्य हो रहे हैं . मोहयाल आश्रम और मोहयाल सेवा सदन हरिद्वार मोहयालों के आकर्षण के केंद्र बने हुए हैं और सुचारू ढंग से संचालित हो रहे हैं. यहाँ जो मोहयाल एक बार ठहरता है इसी का हो जाता है. विश्व भर में इसकी प्रशंसा हो रही है. मोहयाल फ़ौंडेशन स्थित ' एम ई आर आई टी ' के माध्यम से आई टी क्षेत्र में शिक्षा प्रदान करने के कार्य चल रहे हैं.
मोहयालों में जी एम एस के प्रति जो विश्वास बना है उसके पीछे जी एम एस के पदाधिकारियों और मैनेजिंग कमेटी के सदस्यों का निःस्वार्थ सेवा- भाव है. रायजादा बी डी बाली की समर्पण भाव से कार्य करने की शैली है. यही कारण है कि देहरादून और मेरठ में मोहयालों ने अपनी सम्पति जी एम एस को भेंट कर दी.
देश के विभिन्न अंचलों में कार्य कर रही ' लोकल मोहयाल सभाएँ ' जी एम एस के साथ कदम-से कदम मिलकर चल रही हैं. जी एम एस उनकी प्रत्येक परियोजनाओं में आर्थिक और अन्य सहयोग देकर उन्हें पूर्ण समर्थन दे रही है. विभिन्न सभाओं के बने भवन इसके प्रतीक हैं. नवीनतम उदाहरण मोहयाल सभा होश्यारपुर का है. इस सभा का भवन निर्माणाधीन है. इसके पूर्ण होने में आर्थिक समस्या आ गई. उनके पदाधिकारियों ने जी एम एस से अनुरोध किया. रायजादा बी डी बाली ने तत्काल आर्थिक सहयोग की सहमति दे दी.
वास्तव में ये सारे भवन मोहयालों के लिए ही हैं. मोहयाल सभा यमुना नगर ने भी वर्तमान भवन के साथ के प्लाट को लेने का निर्णय लिया तो जी एम एस की ओर से स्वीकृति दे दी गई.
मोहयाल भवन (इन्द्रपुरी ,नई दिल्ली ) पुनः सुव्यवस्थित ढंग से संचालित हो रहा है. इसे नया रूप देने के कार्य हो रहे हैं . मोहयाल आश्रम और मोहयाल सेवा सदन हरिद्वार मोहयालों के आकर्षण के केंद्र बने हुए हैं और सुचारू ढंग से संचालित हो रहे हैं. यहाँ जो मोहयाल एक बार ठहरता है इसी का हो जाता है. विश्व भर में इसकी प्रशंसा हो रही है. मोहयाल फ़ौंडेशन स्थित ' एम ई आर आई टी ' के माध्यम से आई टी क्षेत्र में शिक्षा प्रदान करने के कार्य चल रहे हैं.
मोहयालों में जी एम एस के प्रति जो विश्वास बना है उसके पीछे जी एम एस के पदाधिकारियों और मैनेजिंग कमेटी के सदस्यों का निःस्वार्थ सेवा- भाव है. रायजादा बी डी बाली की समर्पण भाव से कार्य करने की शैली है. यही कारण है कि देहरादून और मेरठ में मोहयालों ने अपनी सम्पति जी एम एस को भेंट कर दी.
वर्ष 2010 में अनेक मोहयाल सभाओं ने ' मोहयाल -मिलन ' आयोजित किए. इनके माध्यम से स्थानीय मोहयाल आपस में मिले. अपनत्व की भावना पनपी. विचार-विमर्श हुए. नए कार्य करने की प्रेरणा मिली. दिसंबर में फरीदाबाद, देहरादून और करनाल में सफल आयोजन हुए. यह मिलन मोहयाल-संस्कृति को संरक्षित और गतिशील रखते हैं. फेसबुक और ऑरकुट आदि सोशल-साईट के माध्यमों से मोहयाल आपस में संवाद करते है. ये माध्यम हमरी संस्कृति को जीवंत रख रहे हैं.
जी एम एस द्वारा 14 नवम्बर को ' प्रतिभाशाली मोहयाल विद्यार्थी सम्मान समारोह ' आयोजित किया गया. युवा और किशोर पीढ़ी में मोहयाली भावना जागृत करने में यह समारोह अहम भूमिका निभा रहा है.
जी एम एस द्वारा 14 नवम्बर को ' प्रतिभाशाली मोहयाल विद्यार्थी सम्मान समारोह ' आयोजित किया गया. युवा और किशोर पीढ़ी में मोहयाली भावना जागृत करने में यह समारोह अहम भूमिका निभा रहा है.
वर्ष 2011 में जी एम एस मोहयालों में रिश्ते- नाते कराने के लिए ' मैट्रिमोनियल -मेला ' आयोजित करने जा रहा है. वार्षिक महाधिवेशन और कांफ्रेंस के साथ यूथ कैम्प का आयोजन भी 2011 में किया जाएगा.
' जी एम एस ' संस्था आप सबके सहयोग से इन सब कार्यों को संचालित कर रही है. ये कार्य प्रत्येक मोहयाल को गौरवान्वित कर रहे हैं. वर्ष - 2011 में भी आप सबका सहयोग जी एम एस को मिलता रहेगा और रायजादा बी डी बाली की टीम आप सबके लिए इसी प्रकार सेवा-भाव से कार्यरत रहेगी.
आइए इस नए वर्ष में हम सब मोहयाल ध्वज को और बुलंदियों पर फहराने का संकल्प लें . आप सब सपरिवार सानंद रहें . यह वर्ष आप सबके लिए सुख-समृद्धि भरा हो.
जय मोहयाल !
' जी एम एस ' संस्था आप सबके सहयोग से इन सब कार्यों को संचालित कर रही है. ये कार्य प्रत्येक मोहयाल को गौरवान्वित कर रहे हैं. वर्ष - 2011 में भी आप सबका सहयोग जी एम एस को मिलता रहेगा और रायजादा बी डी बाली की टीम आप सबके लिए इसी प्रकार सेवा-भाव से कार्यरत रहेगी.
आइए इस नए वर्ष में हम सब मोहयाल ध्वज को और बुलंदियों पर फहराने का संकल्प लें . आप सब सपरिवार सानंद रहें . यह वर्ष आप सबके लिए सुख-समृद्धि भरा हो.
जय मोहयाल !
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मोहयाल मित्र ,जनवरी 2011
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