*यह लघुकथा अनेक लघुकथा-संग्रहों में संकलित है। पाठ्य - पुस्तकों में पढाई जा रही है। मेरे लघुकथा -संग्रह "सलाम दिल्ली" से--
राजधानी का पश्चिम क्षेत्र धमाकों से गूँज उठा। रसोई-गैस के सिलेंडर पटाखों के समान फट-फटकर आसमान में उड़ने लगे। उनके टुकड़े साथ लगे गली-मौहल्लों में गिरने लगे। पूरे क्षेत्र में कोहराम मच गया। लोग छतों पर चढ़कर दूर लगी आग को देखने लगे। बात ही बात में ख़बर फैल गई कि विशाल टैंकों में भरी रसोई-गैस को भी आग लग गई है। दस-बारह किलोमीटर तक सब स्वाहा हो जायेगा ।
अभी तक रसोई-गैस के सिलेंडरों का उड़ना लोगों के लिए एक तमाशा था। अब तमाशा मौत बन गया। लोग घर-बार छोड़कर भागने लगे। स्त्रियों ने धन-गहने ही संभाले। सभी जल्दी से जल्दी मौत के दायरे से बाहर निकल जाना चाहते थे।
नरेन्द्र अपने मित्र के घर राजौरी गार्डन गया हुआ था। आग लगने का समाचार सुन मोटरसायकिल दौडाता आया । जल्दी-जल्दी पत्नी और दोनों बच्चों को पीछे बिठाया। मोटरसायकिल स्टार्ट करने ही वाला था कि माँ रोती-चिल्लाती आई - " बेटे !मुझे भी साथ ले चल। यहाँ ज़िंदा जलने के लिए मत छोड़ जा।"
नरेन्द्र ने मोटरसायकिल स्टार्ट करते हुए कहा-"इन्हें छोड़कर अभी आता हूँ। आकर तुम्हें ले जाऊंगा। "
देखते ही देखते मोटरसायकिल आंखों से ओझल हो गया। माँ अवाक दहलीज पर खड़ी देखती रही। फिर आँगन में आकर आग के रूप में आती मृत्यु की आहट सुनने लगी। उसकी आंखों के सामने वैधव्य और नन्हें नरेन्द्र को जवानी तक पहुंचाने के कष्टप्रद दिनों के अनेक चित्र घूम गए। आंखों से अश्रुओं की धाराएं फूटती चली गईं ।
अचानक गली में शोर मचा। आग पर दमकलवालों ने नियंत्रण पा लिया था। गैस से भरे विशाल टैंकों तक आग पहुँची ही नहीं थी। माँ ने तटस्थ भाव से जीवन को लौट आते महसूस किया।
तभी मोटरसायकिल रुकने की आवाज़ आई । नरेन्द्र पत्नी और बच्चों के साथ घर में दाखिल हो रहा था। माँ की आंखों से दो बूँद अश्रु निकलकर लुढ़क गए। वह उठकर अपनी कोठरी की ओर बढ़ गई। *
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