Tuesday, 16 September 2008
स्व श्रवण राही : मुक्तकों के राजकुमार
साहित्य के क्षेत्र में हमारी सहयात्रा २५ वर्ष से अधिक की रही। दिल्ली छावनी के सुब्रोतो पार्क में हम निकट ही रहते थे। वे एयर फ़ोर्स में ऑडिटर थे और हम एयर फ़ोर्स स्कूल में हिन्दी -संस्कृत विभागाध्यक्ष थे। हर शाम साथ-साथ सैर पर निकलते और साहित्यिक चर्चाएँ करते। वे मधुर कंठ के धनी गीतकार थे। कई कवि-सम्मेलनों में एक साथ कविता-पाठ किया था। अनेक गोष्ठियों का आयोजन किया था। वे "सुमंगलम" संस्था के अध्यक्ष थे और हम महासचिव थे।
२२ मार्च २००८ ( होली के दिन ) शाम को दिल्ली के उत्तम नगर में कवि-सम्मेलन से लौटते समय हार्ट अटैक हुआ और पुत्र दुष्यंत राही के स्कूटर के पीछे बैठे-बैठे ही उनका निधन हो गया। ऐसे परम प्रिय मित्र का विछोह आजीवन सालता रहेगा ।
वे लिखते थे और मैं उनकी रचनाओं का पहला श्रोता होता था। मेरी जितनी पुस्तकें प्रकाशित हुईं उनकी पहली प्रति हमेशा उन्हें ही भेंट की थी।
अभी तक विशवास नहीं होता कि हमारे संग नहीं हैं। १३ सितम्बर को उनकी स्मृति में "सुपथगा " की ओर से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
ऐसे सरल सहज व्यक्तित्व को विनम्रता पूर्वक उनके प्रसिद्ध मुक्तकों के साथ स्मरण करते हुए श्रद्धा -सुमन अर्पित हैं।
*गर्द में भी खिले हम गुलों की तरह
दर्द में भी हँसे बुलबुलों की तरह
हम अमर गीत की भांति हो जायंगे
लोग मिट जायेंगे चुटकलों की तरह।
*रोशनी पर अंधेरों के पहरे हुए
ज़ख्म जितने सिले उतने गहरे हुए
पीर की बांसुरी क्या सुनेंगे भला
लोग शहनाइयां सुनके बहरे हुए।
*प्रेम के गीत लिख व्याकरण पर न जा
मन की पीड़ा समझ आचरण पर न जा
मेरा मन कोई गीता से कम तो नहीं
खोलकर पृष्ट पढ़ आवरण पर न जा।
*बागबान से गुलों की सिफारिश न कर
अपने रहमो करम की यूँ बारिश न कर
माँगने की मुझे दोस्त आदत नहीं
मौत से ज़िंदगी की सिफारिश न कर।
*स्व श्रवण राही के गीतों और मुक्तकों का संग्रह "आस्थाओं के पथ "१९९५ में प्रकाशित हुआ था। इसकी भूमिका "श्रवण राही : शब्दों एवं भावों को जीवन्तता प्रदान करने वाले कवि " लिखने का सौभाग्य हमें मिला.
@सर्वाधिकार सुरक्षित : अशोक लव
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