Monday, 8 September 2008

अशोक लव : कवि या संत

कहाँ से पाई है
तुमने यह सहनशीलता
यह उदारता
यह नम्रता
कभी न शोक में रहने वाला
अशोक वृक्ष - सा व्यक्तित्व ?
तुम्हारे साहित्य को लेकर
क्या- क्या न कहा था
कुछ पूरावाग्रहों से ग्रस्तों ने
और तुमने तुलसी-वाणी को सत्य कर दिया था --
"बूँद आघात सहहीं गिरी कैसे
खल के वचन संत सह जैसे "
तुम कवि हो या संत?
की कवि रूप में संत ?
या संत रूप में कवि
की दोनों हो तुम?
भीतर - बाहर से एक
मनोविज्ञान भी नहीं मानता यह
पर तुम हो
तुम हो मनोविज्ञान के लिए एक चुनौती
आज के आदमी के लिए
एक सुंदर पाठ
और आज के साहित्य का जीवन -द्रव-अमृत ।
*आभा पूर्वे (सम्पादक - नया हस्तक्षेप , मशाकचक ,भागलपुर ) की इस कविता को सुप्रसिद्ध आलोचक डाक्टर अमरेंदर ने " अनुभूतियों की आहटें : ताज़ा गंधों की तलाश" लेख में उधृत किया है।
maine "समय साहित्य सम्मलेन" पुनसिया ,भागलपुर में apne लघुकथा - संग्रह "सलाम दिल्ली " पर आयोजित कार्यक्रम में पटना के एक लघुकथाकार के षडयंत्र का शालीनता से उत्तर दिया था । उसीसे प्रभावित होकर आभा पूर्वे ने यह कविता लिखी थी। वह लघुकथाकार समारोह से मुंह छिपाकर भाग गया था। मैंने साहित्य में राजनीती का हमेशा विरोध किया है।


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