मन-पाखी
क्या- क्या नहीं चाहता मनकैसे-कैसे सजाता है स्वपन ।आंखों में
उतार लेना चाहता है सुनयनों में तैरती झीलें बांहों में भर लेना चाहता है आकाश ।तपती दोपहरियों में चाहता हैतुहिन-कणों की शीतलता कंपाते शीत में भर लेना चाहता है देह की सम्पूर्ण ऊष्मा कभी चाहता है क्षितिज को छूना। मन है न अबोध शिशु-सा नहीं जानता सीमाएं नहीं पढी उसने परिभाषाएं विविशताओं की इसीलिये क्या-क्या नहीं चाहता मन। (*पुस्तक: अनुभूतियों की आहटें ,अशोक लव )____________________________
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